भारत में जब 1857 की क्रांति हुई तोहार वर्ग हर जाती के लोगों ने सहयोग किया। जैसे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई,तथ्यटोपे,मंगलपांडे ,आदि ने क्रांति में भाग लिया और देश को गुलामी की जंजीरोस से आजाद करने के लिए संघर्ष किया। लेकिन कुछ ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जो गुमनामी के अंधेरों में कही खो गए। कुछ क्रांतिवीरों का हम आप नाम भी नहीं जानते है,आज हम उस गुमनामी के अंधेरों में खोए स्वतंत्रता सेनानी के बारे में जाने गए जिन्हें लोग ना के बराबर जानते है।
[इनका नाम है बाके चमार इन्हों ने 1857 की क्रांति में अंग्रेजो को नको चने चबवाए लेकिन इस वीर को दूसरों की तरह वो सम्मान नहीं मिला जो इन्हें मिलना चाहिए था,जिसके वे हकदार थे। हम उनके जीवन के बारे में जाने गए।
बाके चमार का जन्म 27 जुलाई 1820 में उत्तरप्रदेश के जौनपुर के मछली शहर के गांव कुंवरपुर में हुआ था। बाके चमार 1857 की क्रांति में जौनपुर के एक बड़े क्रांतिकरी के रूप में विख्यात थे।इन्होंने अंग्रेजो को अपनी बुद्धिमानी और चतुराई से बहुत बार नको चने चबवाए, जौनपुर क्रांति के नेता हरिपाल सिंहा बॅकेचमार की
[बाके जी की चतुराई और बुद्धिमानी से वाकिफ थे , वे बाके जी को स्नेह करते थे।अंग्रेज इन्हें पकड़ने के लिए आते लेकिन बाके जी किसी ना किसी तरकीप से बच जाते थे। अंग्रेज इन्हें पकड़ने के लिए बौखलाए हुए थे। जैसे जख्मी शेर पर बाके जी भी सवासेर थे। वे हर बार बच जाते थे।बाके चमार अंग्रेजो के सिर दर्द हो गए थे। ब्रिटिश सरकार ने बाके चमार को विद्रोहि घोषित कर दिया। ब्रिटिश सरकार ने जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 50,000 रुपयों का इनाम रखा ,उस जमाने में जब पैसे चलता था, उस जमाने में पचास हजार रुपयों का इनाम बहुत बड़ी बात थी। उस समय वीरा पासी के बाद बाके चमार ही ऐसे क्रांतिकारी थे। जिनपर इतनी बड़ी रकम का इनाम था। लेकिन इनकी क्रांति विफल हो गई। एक सेवानिवृत बिट्स सैनिक ने अंग्रेजो को उनके स्थान की सूचना अंग्रेजो को दे दी,सूचना पाते ही अंग्रेजो ने इनको चारों ओर से घेर लिया।और अंग्रेजी सैनिकों के बीच इनकी झड़प हो गई ,जिसमें इन्होंने कई सैनिकों को मार दिया
बाद में 18 साथियों के साथ फंसी देदी गई,तब के समय में जब 6 से 7 पैसों में घर चल जाता था। तब के जमाने में वीरा पासी और बाके चमार पर 50,000 का इनाम था। तो आप समझ सकते है, कि उस समय इन लोगों से अंग्रेज कितनी दहशत खाते होगे। महापुरुषों की कोई जाती नहीं होती देस की सेवा ही उनकी जाती और धर्म होता है। इन वीरों को जाती गत दृष्टि से नहीं देखना चाहिए,क्यों इन्हों ने भी अपनी आहुति दी है। देश के लिए